महाराजगंज विधानसभा: 60 फीसदी मतदान के साथ तीन-तरफा मुकाबले में फंसा चुनावी पासा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 6 नवंबर को मतदान के साथ सिवान जिले की महाराजगंज विधानसभा सीट (112) ने एक बार फिर राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गई है। करीब 60 फीसदी मतदान के साथ संपन्न हुए इस चुनाव में मुख्य मुकाबला जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के हेम नारायण साह, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विशाल कुमार जायसवाल और जन सुराज पार्टी के सुनील रे के बीच देखने को मिला।
चुनावी आंकड़े और मतदान प्रतिशत
महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,15,954 पंजीकृत मतदाता हैं, जिनमें 1,63,771 पुरुष और 1,52,183 महिला मतदाता शामिल हैं। बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के अनुसार, पहले चरण में राज्य भर में रिकॉर्ड 64.66 फीसदी मतदान हुआ, जबकि महाराजगंज में करीब 60 फीसदी मतदान दर्ज किया गया।
यह क्षेत्र पूर्णतः ग्रामीण है, जहां शहरी मतदाता केवल 5.91 फीसदी हैं। सिवान जिले के महाराजगंज और भगवानपुर हाट सामुदायिक विकास खंडों को मिलाकर बनी इस विधानसभा सीट की जनसंख्या करीब 5.25 लाख है।
मुख्य प्रत्याशी और उनकी पृष्ठभूमि
हेम नारायण साह (जदयू): 63 वर्षीय हेम नारायण साह इस सीट से तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने 2015 में जदयू के टिकट पर यहां से जीत हासिल की थी, लेकिन 2020 में कांग्रेस के विजय शंकर दुबे से महज 1,976 वोटों के अंतर से हार गए थे। 12वीं पास साह के पास 7.7 करोड़ रुपये की संपत्ति है और उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज है।
विशाल कुमार जायसवाल (राजद): 31 वर्षीय विशाल जायसवाल राजद के युवा चेहरे हैं। स्नातक शिक्षित जायसवाल कृषि व्यवसाय से जुड़े हैं और उनके पास 5.1 करोड़ रुपये की संपत्ति है। उनके पिता विनोद जायसवाल एमएलसी हैं, जो इस क्षेत्र में राजद के मजबूत आधार को दर्शाता है।
सुनील राय (जन सुराज पार्टी): 55 वर्षीय सुनील रे प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। 10वीं पास राय समाज सेवा से जुड़े हैं और उनके पास 2.7 करोड़ रुपये की संपत्ति है। उनके खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज हैं।
जातीय समीकरण और वोट बैंक
महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यहां यादव, महतो, अनुसूचित जाति और मुस्लिम मतदाताओं की उपस्थिति महत्वपूर्ण मानी जाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में हिंदू आबादी 84.88 फीसदी और मुस्लिम आबादी 14.92 फीसदी है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जन सुराज पार्टी और एआईएमआईएम के प्रवेश से मुस्लिम वोट बंटने की संभावना है, जो महागठबंधन के लिए चुनौती बन सकती है। यादव वोट बैंक पारंपरिक रूप से राजद के साथ रहा है, जबकि जदयू अन्य पिछड़ी जातियों और अत्यंत पिछड़े वर्गों में अपना आधार रखती है।
चुनावी मुद्दे और जनता की मांगें
महाराजगंज में रोजगार, कृषि विकास, जिला का दर्जा और बुनियादी सुविधाओं की कमी मुख्य चुनावी मुद्दे रहे।
रोजगार और पलायन: बेरोजगारी इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है। युवा रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं। राजद ने हर घर में एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया है, जबकि भाजपा इसे 'जुमलेबाजी' करार देती है।
जिला का दर्जा: पिछले 35 सालों से महाराजगंज को जिला बनाने की मांग अधूरी है। हर चुनाव में यह मुद्दा उठता है, लेकिन नेता जीतने के बाद वादे भूल जाते हैं। विशाल जायसवाल ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया कि महागठबंधन की सरकार बनने पर 30 दिनों के भीतर महाराजगंज को जिला बनाया जाएगा।
कृषि और सिंचाई: यह क्षेत्र पूरी तरह कृषि प्रधान है। धान, गेहूं और गन्ने की खेती यहां की मुख्य आजीविका है। गंडक नदी सिंचाई की रीढ़ मानी जाती है, लेकिन जल जल योजना की खराब स्थिति किसानों के लिए समस्या बनी हुई है।
बुनियादी सुविधाएं: सड़क, पानी और बिजली की समस्याएं यहां के मतदाताओं की प्रमुख चिंताएं रहीं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर न मिलने की शिकायतें भी सामने आईं।
चुनावी इतिहास और राजनीतिक रुझान
महाराजगंज सीट पर पिछले 17 चुनावों में बार-बार सत्ता परिवर्तन हुआ है। जनता दल (यूनाइटेड) ने अब तक पांच बार जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस और जनता पार्टी ने तीन-तीन बार यह सीट जीती है।
दिलचस्प बात यह है कि अब तक राष्ट्रीय जनता दल और भारतीय जनता पार्टी को महाराजगंज में जीत नहीं मिली है। 2020 के चुनाव में कांग्रेस के विजय शंकर दुबे ने 48,825 वोट (30.07 फीसदी) पाकर जदयू के हेम नारायण साह को 46,849 वोट (28.86 फीसदी) के साथ हराया था।
2020 में लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी देव रंजन सिंह ने 18,278 वोट (11.26 फीसदी) पाकर वोट काटे थे, जिससे जदयू को नुकसान हुआ।
चुनाव प्रचार और विवाद
चुनाव प्रचार के दौरान दोनों खेमों में तीखी नोकझोंक देखी गई। राजद प्रत्याशी विशाल जायसवाल ने महिलाओं को प्रति माह 2,500 रुपये देने, मुफ्त गैस सिलिंडर और बिजली के वादे किए। उन्होंने दावा किया कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनने की पूरी संभावना है।
दूसरी ओर, जदयू प्रत्याशी हेम नारायण साह ने विकास कार्यों और एनडीए की नीतियों पर जोर दिया। चुनाव के दौरान कुछ विवाद भी सामने आए। जदयू प्रत्याशी के पुत्र अमित कुमार ने आरोप लगाया कि राजद के कार्यकर्ता मतदाताओं को पैसे बांट रहे थे और उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई।
वीवीपैट पर्चियों का विवाद
मतदान के बाद सिवान शहर के मौली मोहल्ले में नाले के पास बड़ी संख्या में वीवीपैट (VVPAT) पर्चियां मिलने से सनसनी फैल गई। इन पर्चियों पर महाराजगंज विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशियों के नाम लिखे हुए थे, जिसमें राजद उम्मीदवार विशाल जायसवाल के नाम की पर्चियां भी शामिल थीं।
चुनाव आयोग ने इसे स्टाफ की लापरवाही का मामला बताते हुए संबंधित अधिकारियों को निलंबित कर दिया और जांच शुरू की। स्थानीय लोगों ने इसे 'वोट चोरी' की साजिश करार देते हुए प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की।
आगे की राह
महाराजगंज विधानसभा सीट का परिणाम 14 नवंबर को घोषित किया जाएगा। इस बार का चुनाव तीन-तरफा मुकाबले का गवाह बना, जहां जदयू और राजद के बीच परंपरागत लड़ाई में जन सुराज पार्टी ने तीसरे विकल्प के रूप में प्रवेश किया।
2020 के चुनाव में महज 1,976 वोटों के अंतर को देखते हुए, हर वोट इस बार निर्णायक साबित हो सकता है। जातीय समीकरण, मुस्लिम वोट का बंटवारा, युवा मतदाताओं का रुझान और स्थानीय मुद्दों का प्रभाव अंतिम परिणाम तय करेगा।
महाराजगंज की जनता ने 60 फीसदी मतदान के साथ लोकतंत्र के महापर्व में भागीदारी निभाई है। अब सभी की निगाहें 14 नवंबर के परिणाम पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि इस कृषि प्रधान क्षेत्र की तकदीर और तस्वीर बदलने की जिम्मेदारी किसे मिलेगी।

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